बिहार: आज बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर राजनीति गर्म है। चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट का खास रिविजन यानी स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) शुरू किया है। इसका मकसद पुराने वोटर डेटा को सुधारना और नए वोटरों को जोड़ना है। लेकिन विपक्षी पार्टियों को इसमें साज़िश की बू आ रही है।
TDP, जो केंद्र में बीजेपी की सहयोगी पार्टी है, उसने खुद इस प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी ने चुनाव आयोग से कहा है कि इस प्रक्रिया को जल्दबाज़ी में न किया जाए और यह साफ़ किया जाए कि यह नागरिकता की जाँच नहीं है। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट से लोगों के नाम बिना वजह हटाए जा सकते हैं, जिससे गरीब, दलित, प्रवासी जैसे वर्गों को नुकसान हो सकता है।
TDP के नेता लावू श्रीकृष्णा देवरेयालु ने चुनाव आयोग से मुलाकात कर कहा कि जनता को पर्याप्त समय मिलना चाहिए। साथ ही, यह भी ज़रूरी है कि लोगों को इस प्रक्रिया के बारे में साफ़ जानकारी दी जाए, ताकि कोई डर में आकर खुद को वोटर लिस्ट से बाहर न करवा दे।
कांग्रेस, CPI और महागठबंधन के कई नेता पहले से ही इस प्रक्रिया को लेकर नाराज़ हैं। उनका आरोप है कि बीजेपी ये सब जानबूझकर करवा रही है ताकि कुछ समुदायों के वोट काटे जा सकें।
उधर चुनाव आयोग ने साफ़ किया है कि यह सिर्फ़ वोटर लिस्ट अपडेट करने की प्रक्रिया है, और इसका नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है। आयोग ने बताया कि अब तक 90% आबादी इस प्रक्रिया में कवर हो चुकी है और लोगों को 25 जुलाई तक नाम जुड़वाने या सुधार कराने का मौका दिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई। कोर्ट ने कहा कि आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज़ मान्य माने जाएं ताकि किसी को बाहर न किया जाए राजनीति अब तेज़ होती जा रही है। एक तरफ़ सत्ताधारी पार्टी है जो इस प्रक्रिया को सही बता रही है, और दूसरी तरफ़ विपक्ष और यहां तक कि सहयोगी TDP भी सवाल उठा रही है। आने वाले दिनों में ये मुद्दा और बड़ा हो सकता है।