Tuesday, October 21, 2025
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मतदाता अधिकार खतरे में

SIR (संभावित नागरिक रजिस्टर) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई में अदालत ने बेहद सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया कि अगर याचिकाकर्ताओं के आरोपों में दम पाया गया और प्रक्रिया में गड़बड़ियाँ साबित हुईं, तो यह सूची ड्राफ्ट बनने के बाद भी पूरी तरह से रद्द की जा सकती है।

कोर्ट की यह टिप्पणी SIR प्रक्रिया को लेकर उठ रहे सवालों को और गंभीर बना देती है। सुप्रीम कोर्ट ने दस्तावेजों को लेकर आयोग से जवाब तलब किया और इस बात पर हैरानी जताई कि आयोग अब तक ठोस और विश्वसनीय दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रहा है अदालत ने यह भी पूछा कि नागरिकों के नाम अगर सूची से हटाए जाते हैं, तो क्या उन्हें उचित जानकारी और सुनवाई का अधिकार दिया गया? कोर्ट ने साफ कहा कि नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के साथ कोई भी समझौता स्वीकार्य नहीं है।

अगली सुनवाई की तारीख 29 जुलाई तय की गई है, जहाँ यह तय हो सकता है कि अदालत आगे की प्रक्रिया को किस दिशा में ले जाएगी। kal की सुनवाई से यह संकेत साफ है कि अदालत सिर्फ तकनीकी आधारों पर नहीं, बल्कि नागरिक अधिकारों और संवैधानिक मूल्यों के आधार पर फैसला करेगी सुनवाई के दौरान कोर्ट की बातों से यह आभास हुआ कि आयोग खुद भी दस्तावेज़ों को लेकर आश्वस्त नहीं है।

वह न तो जवाबों में स्पष्टता दिखा सका और न ही प्रक्रिया को पारदर्शी साबित कर सका। कोर्ट ने यहां तक कहा कि पूरी प्रक्रिया “कृपा और संयोग” के आधार पर नहीं चल सकती इस पूरे मामले में एक और चिंताजनक पहलू यह है कि मतदाता अधिकार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर आम जनता में जागरूकता और सक्रियता बेहद कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि लोगों ने समय रहते आवाज़ नहीं उठाई, तो उनके लोकतांत्रिक अधिकारों पर गहरी चोट हो सकती है।
क्या है SIR?

SIR यानी संभावित नागरिक रजिस्टर एक ऐसी सूची है, जिसे देश के नागरिकों की पहचान और दस्तावेज़ों के आधार पर तैयार किया जा रहा है। यह सूची भविष्य में मतदाता रजिस्टर सरकारी योजनाओं की पात्रता और यहां तक कि नागरिकता के निर्धारण में भूमिका निभा सकती है हालांकि, इस प्रक्रिया पर लगातार यह आरोप लगते रहे हैं कि लाखों लोगों के नाम बिना उचित प्रक्रिया के हटाए जा रहे हैं, और उन्हें कोई जानकारी नहीं दी जा रही नजरें अगली सुनवाई पर अब सबकी नजरें 29 जुलाई की अगली सुनवाई पर हैं। सुप्रीम कोर्ट की आज की सख्ती से यह तय है कि अगर आयोग अपनी प्रक्रिया को न्यायसंगत और पारदर्शी साबित नहीं कर पाया, तो बड़ा फैसला सामने आ सकता है।

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