Tuesday, October 21, 2025
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ममता ने भतीजे को ही क्‍यों किया आगे, ‘वन पर्सन, वन पोस्‍ट’ का फॉर्मूला तोड़ सौंपे दो पद; क्‍या है दीदी की स्‍ट्रेटजी?

 कोलकाता: राजनीति की बिसात पर कब कौन सी चाल चलनी है, कब किसे आगे करना है और किसे पीछे, कब आक्रामक होना है और कब शांत, अनुभवी नेता ये सारे दांव भली-भांति जानते हैं। मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी भी ऐसी ही अनुभवी व मंझी हुई नेता हैं वर्ष 2026 का विधानसभा चुनाव नजदीक है। ममता को 15 वर्षों के व्यवस्था विरोधी कारकों के साथ चुनाव लड़ना है। ऐसे में सांगठनिक एकजुटता जरूरी है। इसीलिए वह एक-एक कर चालें चल रही हैं ताकि चौथी बार जीत की राह में मुश्किलें न आएं इन्हीं में से एक चाल है, अपने पार्टी महासचिव व सांसद भतीजे अभिषेक बनर्जी को वरिष्ठ नेता सुदीप बंद्योपाध्याय की जगह लोकसभा में तृणमूल संसदीय दल का नेता बनाना

ममता ने पार्टी में भतीजे को क्‍यों आगे किया?

ममता ने अपने भतीजे को आगे कर बड़ी चाल चली है ताकि एक तीर से कई निशाने साधे जा सकें। अभिषेक को लोकसभा में पार्टी का नेता बनाना अचानक लिया गया निर्णय नहीं है। वर्ष 2021 में प्रशांत किशोर के चुनाव प्रबंधन में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद पार्टी में अभिषेक बनर्जी का कद काफी बढ़ गया था, क्योंकि प्रशांत किशोर को वे ही रणनीति बनाने के लिए बंगाल लाए थे उस जीत के बाद अभिषेक ने पार्टी में ‘एक व्यक्ति, एक पद’ और चुनाव लड़ने के लिए उम्र सीमा तय करने की योजना बनाई थी,

ताकि तृणमूल को नए कलेवर में लाया जा सके और युवाओं को मौका मिले। परंतु इससे पार्टी के अंदर बुजुर्ग और युवा नेताओं में कलह शुरू हो गया हालात यहां तक पहुंच गए कि ममता को राष्ट्रीय कार्यकारिणी को भंग कर नए सिरे से समिति गठित करनी पड़ी। पार्टी में दो ध्रुवीय विभाजन साफ दिखने लगा था। एक तरफ ममता के प्रति निष्ठा दिखाई जा रही थी तो दूसरी तरफ अभिषेक की ओर। इसके बाद ममता ने सांगठनिक स्तर पर फेरबदल कर गुटबाजी और आपसी संघर्ष को थामने के लिए कई कदम उठाए। इसके बावजूद गुटबाजी जारी रही।

ऑपरेशन सिंदूर में भतीजे को कराया शामिल

अब जबकि विधानसभा चुनाव में कुछ ही माह बचे हैं तो ममता ने पार्टी को एकजुट करने को बड़ी रणनीति बनाई। सबसे पहले जब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विदेश भेजने के लिए सर्वदलीय टीम बनाई तो उसमें तृणमूल से सांसद यूसुफ पठान को शामिल किया गया था, लेकिन ममता ने इस पर आपत्ति जताई और अपने भतीजे अभिषेक को भेजा। इसके बाद अब संसदीय दल का नेता बना दिया।

ममता ने आखिर कौन से शिकार किए?

राजनीतिक विश्लेषक इस कदम को एक तीर से कई शिकार करने जैसा मान रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा का विषय है। जब ममता ने 1998 में कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस बनाई तो उनके साथ युवा कांग्रेस से उनके कुछ साथी तृणमूल में शामिल हुए। कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भी साथ आए। फिर सिंगुर व नंदीग्राम जैसे आंदोलन के माध्यम से ममता बंगाल की सत्ता पर काबिज हो गईं उस समय एक तरफ तृणमूल में ममता और उनके पुरानी साथी थे

यानी जिन्हें सीनियर ब्रिगेड और दूसरी ओर अभिषेक के इर्द-गिर्द सत्ता का एक और केंद्र नया युवा ब्रिगेड बन गया। इसके बाद पुराने व युवा ब्रिगेड के बीच भीषण गुटबाजी होने लगी। आपसी संघर्ष में कई हत्याएं भी हुई थीं, क्योंकि कोई भी अपना वर्चस्व छोड़ने को तैयार नहीं था। वैसे भी अभिषेक बनर्जी को राजनीति में ममता बनर्जी ही लेकर आई हैं अभिषेक का धीरे-धीरे संगठन में कद बढ़ने लगा और अघोषित रूप से उन्हें पार्टी में ममता के बाद दूसरे नंबर पर यानी ‘सेकेंड-इन-कमान’ कहा जाने लगा। परंतु, जब स्थिति थोड़ी बिगड़ने लगी तो ममता ने सांगठनिक स्तर पर साफ कर दिया कि पार्टी प्रमुख वही हैं और उनका ही निर्देश और आदेश आखिरी है।

तो फिर अभिषेक को कैसे दे दिए दो पद?

अब ममता ने जब भतीजे को पार्टी में दो पदों पर बैठा दिया है तो साफ हो गया कि उन्होंने अभिषेक के ‘एक व्यक्ति, एक पद’ वाली रणनीति को नकार दिया है, वहीं लगे हाथ पार्टी स्तर पर संदेश भी दे दिया है कि तृणमूल में बुजुर्ग नेताओं के साथ-साथ युवाओं को भी समान मौका मिल रहा है इससे पार्टी में जो गुटबाजी हो रही है, उसे रोकने में भी मदद मिलेगी। लोकसभा में अपने पुराने व करीबी साथी अधिवक्ता व सांसद कल्याण बनर्जी को पार्टी के मुख्य सचेतक पद से हटा दिया, ताकि संसद में अभिषेक के साथ समन्वय में कोई दिक्कत न हो।

कल्‍याण और महुआ मोइत्रा के कैसे हैं संबंध?

कल्याण का आवास मुख्यमंत्री के कालीघाट स्थित आवास से बिल्कुल सटा हुआ है। लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा के साथ कल्याण का छत्तीस का आंकड़ा है। अभिषेक के खिलाफ भी वह बोलते रहे हैं। अभिषेक को कोई दिक्कत न हो, इसके लिए लोकसभा में पार्टी स्तर पर पूरी व्यवस्था ही बदल दी गई है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजनीति में एक तरफ जहां सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी, मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश यादव, लालू यादव के बाद तेजस्वी यादव पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं तो ममता ने अभिषेक को आगे कर बड़ी चाल चली है, ताकि सब कुछ नियंत्रण में रहे।

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